Sonam Wangchuk Sparked Protests In Ladakh लद्दाख वह भारत का इलाका है जिसकी पहचान उसकी प्राकृतिक सुंदरी, उसकी विशिष्ट संस्कृति और सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति से होती है। लद्दाख हमेशा से अपनी अलग पहचान के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद जब लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया, तब यहां के लोगों को उन्हें विशेष अधिकार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व की उम्मीद थी। लेकिन धीरे-धीरे जब यह साफ़ हुआ कि उन्हें न विधानसभा मिलेगी, न ही संविधान की छठी अनुसूची के तहत कोई सुरक्षा, तब लोगों के बीच असंतोष पनपने लगा। इसी असंतोष ने समय के साथ आंदोलन का रूप ले लिया और इस आंदोलन का चेहरा बने Sonam Wangchuk
24 सितंबर 2025 को साकीत वांगचुक Ladakh Protest मैं हुई बहुत घाटना
September 24, 2025 को लेह शहर में लद्दाख को पूर्ण राज्य और छठी अनुसूची का दर्जा दिलाने के लिए बड़ी संख्या में लोग सड़क पर उतरे। यह आंदोलन सोनम वांगचुक की 35 दिन की भूख हड़ताल के समर्थन में किया गया। प्रदर्शन शुरुआत में शांतिपूर्ण था, लेकिन कुछ समय बाद हिंसा भड़क गई। प्रदर्शनकारियों ने CRPF वाहन में आग लगा दी और भाजपा कार्यालय पर पत्थरबाजी की। इससे प्रशासन को तुरंत स्थिति नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात करने पड़े।

सड़कें बंद और शहर पर असर
हिंसक झड़पों के वजह से लेह की कई मुख्य सड़कें बंद कर दी गईं। प्रशासन ने शहर के कुछ हिस्सों में बंद (shutdown) का आदेश जारी किया ताकि वहां सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित कर सके। शहर के व्यापारी, वाहन चालक और आम जनता इस बंदी से प्रभावित हुए, लेकिन उन्होंने आंदोलनकारियों की मांगों को समझने की कोशिश की। प्रदर्शनकारियों का उद्देश्य केवल हिंसा नहीं बल्कि अपनी आवाज़ को सरकार तक पहुँचाना था।
Sonam Wangchuk का नाम लद्दाख की ही नहीं, बल्कि पूरे देश और दुनिया में जाना जाता है। वह एक शिक्षाविद, पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने शिक्षा के रूप में सुधार की दिशा में काम किया और “SECMOL” जैसे संस्थान की स्थापना की। पर्यावरण संरक्षण के लिए उन्होंने “आईस स्टूपा” जैसी अभिनव तकनीक का आविष्कार किया जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया। उनकी छवि एक शांतिप्रिय और दूरदर्शी नेता की है। लेकिन अब वह सिर्फ शिक्षा और पर्यावरण तक सीमित नहीं हैं, बल्कि लद्दाख की पहचान और वहां के लोगों के अधिकारों की लड़ाई में अगुवा बन चुके हैं।
लद्दाख के लोगो किस चीज़ की परेशानी सता रही है क्या इसके पीछे का कारण
लद्दाख के लोगों की सबसे बड़ी चिंता यह है कि उनकी जमीन और उनकी संस्कृति कहीं विकास और बड़े-बड़े औद्योगिक प्रोजेक्ट्स की भेंट न चढ़ जाए। उन्हें लगता है कि अगर बाहरी लोगों को बिना रोक-टोक बसने और जमीन खरीदने की अनुमति दी गई तो स्थानीय लोग हाशिए पर चले जाएंगे। एक दूसरी ओर, लद्दाख के नाजुक पर्यावरण पर भी खतरा उठेगा। बर्फीली चोटियां, ग्लेशियर, नदियां और पारिस्थितिकी तंत्र पहले ही जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे हैं, ऊपर से अगर बड़े पैमाने पर खनन और औद्योगिक गतिविधियां शुरू हुईं तो हालात और खराब हो जाएंगे। यही वजह है कि Sonam Wangchuk और उनके साथ खड़े लोग लगातार यह मांग कर रहे हैं कि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए।
छठी अनुसूची आदिवासी बहुल इलाकों की सामाजिक और सांस्कृतिक सुरक्षा के लिए ही बनाई गई है। लद्दाख की आबादी का अधिकांश हिस्सा जनजातीय समुदायों से है, इसलिए यहां पर इस प्रावधान को लागू करना तर्कसंगत भी होगा। लेकिन सरकार ने अब तक इस दिशा में कोई सख्त कदम नहीं उठाया। इसी असंतोष के चलते ही सोनम वांचुक ने भूख हड़ताल शुरू की। उन्होंने कई बार लंबी भूख हड़ताल की, जिनमें हजारों लोग उनके साथ शामिल हुए। लेह और कारगिल जैसे दो अलग-अलग जिलों के संगठन भी पहली बार एकजुट हुए। यह एक बड़ी बात है क्योंकि ऐतिहासिक रूप से लेह और कारगिल के बीच राजनीतिक मतभेद रहे हैं। लेकिन इस आंदोलन ने दोनों को एक मंच पर ला दिया।
पिछले महीनों में आंदोलन तेज़ और बढ़ गया है। 2025 की शुरुआत में Sonam Wangchuk ने 21 दिन का भूख हड़ताल किया। इस में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। महिलाओं और छात्रों की भी सक्रिय भागीदारी रही। किसानों और चरवाहों ने अपने काम छोड़कर प्रदर्शन में भाग लिया। लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस जैसे संगठन खुलकर आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं। यह आंदोलन अब सिर्फ लद्दाख तक सीमित नहीं रहा, बल्कि राष्ट्रीय मीडिया और सोशल मीडिया में भी चर्चा का विषय बन गया है।
केंद्र सरकार की तरफ से कई बार बातचीत की कोशिश हुई लेकिन अब तक कोई ठोस हल नहीं निकला। सरकार का कहना है कि वे जनजातीय दर्जे और कुछ विशेष प्रावधानों पर विचार कर रही है, लेकिन छठी अनुसूची की गारंटी देने से बच रही है। बीजेपी नेताओं का मानना है कि लद्दाख के विकास के लिए बड़े प्रोजेक्ट जरूरी हैं और वे क्षेत्र की प्रगति में मदद करेंगे। वहीं, विपक्षी दल इस आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं और सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि वह जल्द से जल्द लद्दाख के लोगों की मांगें पूरी करे।
Ladakh के लोगो का सबसे ज़्यादा विरोध किस चीज़ के ऊपर है
लद्दाख की जनता के लिए सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी भी है। यहां के युवा सरकारी नौकरियों और नए प्रोजेक्ट्स में अपने को प्राथमिकता चाहते हैं। लेकिन यदि बाहर से बड़ी संख्या में लोग आ गए तो वहां के स्थानीय युवाओं का हक मारा जाएगा। महिलाएं भी कहती हैं कि अगर लद्दाख की संस्कृति और भाषा को नहीं बचाया गया तो आने वाली पीढ़ियां अपनी पहचान खो देंगी। यही कारण है कि आंदोलन में हर वर्ग के लोग शामिल हो चुके हैं।
Sonam Wangchuk निरंतर यह दलील देते हैं कि यह आंदोलन लद्दाख का ही नहीं, पूरे भारत का है। क्योंकि यदि सीमा से लगते इलाके कमजोर हो गए तो इसका प्रभाव देश की राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ेगा। लद्दाख चीन और पाकिस्तान दोनों का सीमा से जुड़ा हुआ है। यहाँ यदि जनता असंतुष्ट और नाराज़ हो गई तो बाहरी शक्तियां इसका लाभ उठा सकती हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि केंद्र सरकार जल्द ही ऐसा खुला समाधान निकाले जिससे लद्दाख के लोग संतुष्ट हों और उनकी पहचान सुरक्षित रहे।
यह आंदोलन शांतिपूर्ण है और इसका रूप गांधीवादी अंदाज़ है। Sonam Wangchuk बार-बार लोगों को कहते हैं कि हिंसा से कुछ नहीं हासिल होगा। वे लोगों से कहते हैं कि शांतिपूर्वक रख अपनी बात। भूख हड़ताल, धरना और सोशल मीडिया पर अभियान चलाकर वे जनता की आवाज़ दिल्ली तक पहुंचा रहे हैं। यह आंदोलन अब अंतरराष्ट्रीय मीडिया तक भी पहुंच गया है। दुनिया भर में पर्यावरण और मानवाधिकार संगठनों ने लद्दाख की स्थिति पर चिंता जताई है।
Ladakh का भविष्य की चीज ऊपर निर्भर करता है
लद्दाख का भविष्य अब यह पर निर्भर करता है कि आगे केंद्र सरकार क्या कदम उठाती है। यदि समय पर छठी अनुसूची लागू कर दी जाए, स्थानीय लोगों के अधिकार सुरक्षित किए जाएं और उन्हें राजनीतिक प्रतिनिधित्व दिया जाए, तो यह समस्या हल हो सकती है। लेकिन यदि देरी हुई, तो यह आंदोलन और बड़ा रूप ले सकता है। लद्दाख के लोग अब पीछे हटने के मूड में नहीं हैं।
इस पूरे आंदोलन ने यह साबित कर दिया है कि अगर जनता एकजुट हो जाए और शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांग रखे तो उसकी आवाज़ दबाई नहीं जा सकती। Sonam Wangchuk इस आंदोलन का चेहरा हैं लेकिन यह आंदोलन लाखों लद्दाखवासियों की उम्मीदों और सपनों का प्रतीक है। वे चाहते हैं कि उनकी आने वाली पीढ़ियां भी उसी गर्व और सम्मान के साथ जिएं जिस तरह उनके पूर्वज जीते आए हैं।
निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि Sonam Wangchuk का लद्दाख आंदोलन न तो जमीन और नौकरियों का सवाल है, यह पहचान, संस्कृति और पर्यावरण की सुरक्षा का सवाल है। यह आंदोलन यह भी दर्शाता है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जनता अपनी बात शांतिपूर्ण तरीके से रख सकती है और सरकार पर दबाव डाल सकती है। अब समय है कि केंद्र सरकार इस आवाज़ को सुने और लद्दाख को वह अधिकार दे जिसकी उसे लंबे समय से प्रतीक्षा है।
Link : https://www.bbc.com/hindi/live/cj4yqdqx9q1t